व्याकुल हो कर,
करते है,
हमसफ़र की तलाश!
गढ़ते है रोज इश्क़ की,
नयी परिभाषा,
देते है मिसाल,
किताबों के,
काल्पनिक चरित्र का,
प्रेम में शिव जैसा,
सती के लिए,
विरह की अग्नि में,
खुद को जला पाओगे क्या?
स्त्री को खोने के वियोग में,
दशरथ माँझी जैसा,
पर्वत का सीना,
चीर पाओगे क्या?
अपनी खुशियों को,
जहर दे कर,
उसकी खुशियों को,
अमृत दे पाओगे क्या?
शायद नहीं!
-मनोरथ
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